बेंगलुरु से 156 किमी और मैसूर से 48 किमी दूर मांड्या जिले में एक कस्बा है मेलुकोटे, जिसकी सांस्कृतिक विरासत में रामायण से लेकर महाभारत तक की स्पष्ट झलक है। वनवास के दौरान यहां आए भगवान राम के पदचिह्न और उनका बनाया पानी का सोता आज भी यहां मौजूद है। फिर महाभारत काल में बलराम के आने और 11वीं सदी में रामानुजाचार्य के रहने के किस्से यहां के लोगों की जुबान पर हैं।
कई लोग इस शहर को दक्षिण बद्री भी कहते हैं और मंदिरों का शहर भी। शहर के एक छोर पर चेलुवनारायण स्वामी मंदिर है, जो ग्यारहवीं सदी का है। दूसरे, दक्षिणी छोर पर धनुष्कोटि है, जहां भगवान राम के पद चिह्न हैं। बताया जाता है कि वनवास के दिनों में राम यहां सीता और लक्ष्मण के साथ आए थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि धनुष्कोटि में पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित जल स्रोत रहस्यमय है। इसे सदानीरा कहा जाता है, यानी जिसका पानी कभी खत्म नहीं होता। इससे निकला पानी नीचे बहते हुए स्वाद बदलता जाता है। कहीं खारा तो कहीं… मीठा। लोक मान्यता यह है कि परिवर्तन आसुरी और दैवीय गुणों का प्रतिनिधित्व है।
सोते से जुड़ी दिलचस्प लोक मान्यता है कि वनवास में जब राम-सीता और लक्ष्मण यहां आए थे तो सीता को बहुत तेज प्यास लगी। आसपास कहीं पानी नहीं था। इसलिए लक्ष्मण ने पहाड़ पर बाण चलाकर पानी निकालने की कोशिश की। लेकिन पानी नहीं निकला। फिर राम ने चट्टान पर बाण चलाया तो पानी का सोता फूट पड़ा। तब सीता, जो लक्ष्मी का ही अवतार थीं, ने कहा कि पानी का यह स्रोत कभी सूखना नहीं चाहिए। एक व्यक्ति की प्यास बुझाने लायक पानी यहां हमेशा रहना चाहिए। यह बात एकदम सच ही रही है, इस सोते का पानी कभी नहीं सूखता। एक जनश्रुति यह भी है कि भगवान राम यहां अपने बेटों लव और कुश के साथ आए थे।
एक और जनश्रुति है कि राम ने वानर सेना के जलपान के लिए यहां पानी निकाला था। स्थानीय लोगों के अनुसार वानर सेना वाली जनश्रुति सच लगती है, क्योंकि कर्नाटक में हम्पी वो स्थान है, जहां राम, हनुमान और सुग्रीव से मिले थे। वहां बालि से युद्ध हुआ था। सीता का हरण तो हम्पी आने से पहले हो गया था। वाल्मीकि रामायण में भी राम के वानर सेना के साथ यहां आने का प्रसंग है। राम के पदचिह्न, जल स्रोत के अलावा यहां राम, सीता लक्ष्मण और हनुमान के भित्तीचित्र भी चट्टान पर उत्कीर्ण हैं।
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