आत्मनिर्भर खबर डॉट कॉम डेस्क: हमारे कृषि प्रधान देश में कृषि को उन्नत बनाने में मवेशियों की बड़ी भूमिका होती है. हिंदू धर्म में बैल-पोला पर्व पर मवेशियों की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन किसान गाय एवं बैलों की विशेष सेवा एवं पूजन करते हैं. यह पर्व महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. पोला उत्सव प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह (भादों) की अमावस्या के दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 6 सितंबर को बैल पोला महोत्सव सेलीब्रेट किया जायेगा. हालांकि पिछले दो साल से कोरोना संक्रमण के कराण पोले पर सार्वजनिक आयोजन नहीं हो पा रहे हैं. विदर्भ के अधिकांश क्षेत्रों में बैल पोला उत्सव दो दिन मनाया जाता है. पहले दिन बड़ा पोला और अगले दिन छोटा पोला. बड़ा पोला के दिन किसान बैल को सजाकर उसकी पूजा करते हैं, जबकि छोटा पोला में बच्चे खिलौने के बैल सजाकर घर-घर लेकर जाते हैं. बदले में उन्हें हर घरों से पैसे अथवा उपहार मिलते हैं.
किसानों के लिए है महत्वपूर्ण
आज भी अधिकांश भारतीय किसान बैलों और गायों के बल पर ही खेती कर रहे हैं. इसीलिए वे इन पशुओं को ईश्वर तुल्य मानते हुए साल में कई बार पूजा-अर्चना एवं उनकी सेवा करते हैं. महाराष्ट्र में तो अधिकांश घरों में आज भी दरवाजे पर गाय बैल बंधे देखे जा सकते हैं. किसानों का कहना है कि जिसके घर में जितनी ज्यादा गाय बैल होते हैं, वह उतना ही समृद्ध माना जाता है. उनके लिए ये पशु नहीं बल्कि माँ लक्ष्मी जैसा स्थान रखते हैं. नाशिक में अंगूर, अनार, प्याज, मराठवाड़ा में सोयाबीन-ज्वार, लातूर में अरहर, नागपुर में संतरे अथवा यवतमाल में कपास के बड़े-बड़े उत्पादक किसान तमाम ट्रैक्टरों के मालिक होने के बावजूद अपने घर के बाहर गाय बैल बांधना अपना सम्मान मानते हैं. वे मानते हैं कि इन्हीं गाय-बैलों के कारण आज वे यहां तक पहुंचे हैं. ये पशु उनकी सिर्फ जरूरते ही पूरी नहीं करते, बल्कि इन्हें परिवार का अहम सदस्य भी मानते हैं.
इस तरह मानते है पोला
भाद्रपद अमावस्या से एक दिन पूर्व किसान गाय एवं बैलों को रस्सी से आजाद कर देते हैं. इनके शरीर पर हल्दी का उबटन एवं सरसों का तेल लगाकर मालिश करते हैं. अगले दिन यानी बैल पोला के दिन गाय-बैलों को स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात उनका श्रृंगार करते हैं. गले में घंटी युक्त नई माला पहनाते हैं. कुछ लोग उनके सींगों को कलर करते हैं, उसमें धातु के छल्ले, एवं वस्त्र पहनाते हैं और माथे पर तिलक लगाकर उन्हें हरा चारा और गुड़ खिलाते हैं. कहीं-कहीं पोली नैवेद्य (चावल एवं दाल से बना विशिष्ठ पकवान व्यजंन) और गुडवनी (गुड़ से बना पकवान) भी खिलाया जाता है. घर के सारे सदस्य इन पशुओं के सामने हाथ जोड़कर खेती में सह भूमिका निभाने के लिए धन्यवाद कहते हैं. इस अवसर पर भारी तादाद ग्रामीण इकट्ठा होते हैं. कहीं ढोल तो कहीं लेजिम बजाते हुए गांव-गांव उनका जुलूस निकालते हैं. इस दरम्यान ग्रामीण महिलाएं अपने-अपने घरों से निकलकर इन पशुओं को तिलक लगाकर उनकी पूजा करते हैं. बहुत से किसान बैल पोला के अगले दिन से नई फसल उगाने के लिए खेतों की ओर प्रस्थान करते हैं. हालांकि पिछले दो साल से कोरोना संक्रमण के कराण लागू प्रतिबंधों के चलते पोले पर सार्वजनिक आयोजन नहीं हो पा रहे हैं.