राज्य परिवहन प्रवासी मित्र संगठन की मांग, परिवहन मंत्री को सौंपा ज्ञापन
औद्योगिक न्यायालय के आदेश का पालन नहीं हुआ तो पूरे राज्य में आंदोलन की चेतावनी
अकोला ब्यूरो: राज्य परिवहन महामंडल के कर्मचारियों के वेतन को लेकर राज्य शासन द्वारा अनदेखी की गई तो किसानों की तरह आत्महत्याएं बढ़ेंगी और सामान्य लोगों के लिए लालपरी बीते जमाने की बात हो जाएगी. इसलिए महामंडल को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान कर राज्य परिवहन कर्मचारियों के वेतन को लेकर औद्योगिक न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का पालन करते हुए कर्मियों का वेतन समय पर देने की मांग महाराष्ट्र राज्य प्रवासी मित्र संगठन के अध्यक्ष विनोद गवर ने परिवहन मंत्री से ज्ञापन के माध्यम से की है. साथ ही न्यायालय के आदेश के तहत वेतन समय पर नहीं दिया गया तो सरकार के खिलाफ उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर करने और पूरे राज्य में यात्रियों को साथ लेकर आंदोलन करने की चेतावनी ज्ञापन में दी गई है.
राज्य कर्मियों को सातवां वेतन तो इन्हें वेतन भी नहीं
महाराष्ट्र सरकार के उपक्रम के तौर पर महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडल की वर्ष 1948 में स्थापना की गई थी. आज 18,449 बसों के साथ 350 बस स्थानक, विभिन्न स्थानों पर कार्यशाला, प्रशिक्षण केंद्र और डेढ़ लाख से अधिक कर्मचारी महामंडल में कार्यरत हैं. ‘यात्रियों की सेवा के लिए’ घोषवाक्य और राज्य की सामान्य जनता की विश्वास प्राप्त लालपरी को बचाए रखने में ड्राइवर, कंडक्टर और कामगार महत्वपूर्ण घटक हैं. कोविड-19 की महामारी के बाद सभी विभागों की परिस्थिति खराब हो गई थी लेकिन ऐसे विपरित हालात में भी मुश्किलों का सामना करते हुए अपनी जान की परवाह किए बगैर एसटी कामगारों ने अपनी ड्यूटी अच्छी तरह निभाई. लेकिन आज महामारी का प्रभाव समाप्त होने के बावजूद एसटी कर्मचारियों को वेतन के अभाव में दयनीय जीवन जीने की नौबत आ गई है. इनकी विभिन्न वित्तीय मांगें तो दूर बल्कि उन्हें अपने अधिकार के मासिक वेतन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. वेतन के लिए ही अनेक एसटी कामगारों ने अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर दी है. यह बात निश्चित रूप से निंदनीय है. अपने अधिकार के वेतन के लिए आत्महत्या करने की नौबत आने वाला यह एसटी कामगार सरकार की ओर से हमेशा उपेक्षित रहा है. आज राज्य की आर्थिक स्थिति नाजुक होने की बात कही जा रही है. राज्य सरकार के सभी विभागों में अच्छा वेतन होने के बावजूद सातवां वेतन आयोग लागू किया गया जबकि एसी कर्मियों को उनके अधिकार का वेतन भी नहीं दिया जा रहा है.
अन्यथा हाई कोर्ट में दायर करेंगे अवमानना याचिका
वास्तव में वेतन प्रदान अधिनियम 1936 के प्रावधान के अनुसार न्यूनतम 10 तारीख के भीतर वेतन अदा करना चाहिए. लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है. इसके लिए परिवहन महामंडल का प्रशासकीय विभाग ही नहीं बल्कि राज्य सरकार के सत्ताधीश भी उतने ही जिम्मेदार हैं. एसटी कर्मचारियों के वेतन के संदर्भ में औद्योगिक न्यायालय मुंबई ने 3 सितंबर 2021 के निर्णय में वेतन नियोजित तारीख को देने का आदेश दिया है. वेतन प्रदान अधिनियम 1936 के अनुसार एसटी कामगारों को निर्धारित तिथि को वेतन देने की मांग राज्य परिवहन प्रवासी मित्र संगठन के अध्यक्ष विनोद बबनदास गवर ने ज्ञापन के माध्यम से परिवहन मंत्री अधि. अनिल परब सहित एस.टी. के प्रबंधक निदेशक शेखर चन्ने से की है. साथ ही न्यायालय के आदेश के तहत वेतन समय पर नहीं दिया गया तो सरकार के खिलाफ उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर करने और पूरे राज्य में यात्रियों को साथ लेकर आंदोलन करने की चेतावनी ज्ञापन में दी गई है.