एमबीबीएस करके सरकारी डॉक्टर बना, लेकिन जरूरतमंदों के लिए कुछ कर गुजरने की चाह ने आईएएस बनने का जज्बा जगाया। इसी जज्बे और लगन के साथ यूपीएससी की तैयारी में जुट गया। 4 बार असफल रहा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 5वीं बार में सेल्फ स्टडी के साथ कोचिंग ली और 102वीं रैंक लेकर आईएएस बन गया। ये कहना है हरियाणा के रोहतक जिले के भराण गांव के राजेश मोहन का, जो इसलिए आईएएस बने, ताकि असहायों की मदद करने के लिए किसी को रिक्वेस्ट न करनी पड़े। यूपीएससी के लिए उन्होंने सरकारी डॉक्टरी भी छोड़ दी।
राजेश मोहन के ताऊ हवा सिंह बताते हैं कि राजेश का नेचर सबके लिए स्पोर्टिव है। वह सभी का खुद से बहुत ज्यादा भला करने के बारे में सोचते हैं और करते हैं। वह चंडीगढ़ के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे, लेकिन उन्होंने सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी नौकरी के साथ-साथ की। वह हमेशा यह कहते थे कि अस्पताल में कितने असहाय लोग आते हैं। अनेक केसों में मरीज की जान दांव पर लगी होती है। मगर उनका परिवार पैसे के अभाव में उनकी सांसें बचाने में असमर्थ होता है। कई केसों के लिए उन्होंने अपने सीनियर डॉक्टर्स की काफी रिक्वेस्ट की, लेकिन सुनवाई नहीं होती थी।
राजेश ग्रामीण एरिया के लिए बहुत कुछ करना चाहते हैं। वह पिछड़े लोगों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन वे कोई अधिकारी नहीं है, इसलिए उन्हें अफसरों से रिक्वेस्ट करनी पड़ेगी। रिक्वेस्ट के बाद भी शायद अफसर काम न करें। इसके लिए उन्होंने ठाना कि वे आईएएस अधिकारी बनेंगे और अपनी ही कलम से लोगों की मदद करेंगे। आईएएस बनने के लिए उन्होंने अपनी सरकारी डॉक्टरी भी छोड़ दी और यूपीएससी की पढ़ाई में जुट गए।