भारत में बहुत से समाजसेवकों ने अपने अभूतपूर्व योगदान से अमिट छाप छोड़ी है. इनमें से एक प्रमुख नाम बाबा आमटे का है. बाबा आमटे की कुष्ठ रोगियों की सेवाओं ने उन्हें देश के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी के रूप में ख्याति दिलाई है. उन्होंने कुष्ठ (Leprosy) रोगियों के लिए अनेक आश्रणों और समुदायों को स्थापना की. इसके अलावा उन्होंने वन्य जीवन संरक्षण और नर्मदा बचाओ आंदोलन सहित बहुत सारे सामाजिक कार्यों में अपनी भागीदारी दी थी. उनकी कार्यशैली, जीवनदर्शन और सेवाभाव के कारण उन्हें आधुनिक गांधी भी कहा जाता था. 9 फरवरी को देश उनके दिए योगदान को याद कर रहा है.
बाबा आमटे ने सेवा का कोई साधारण मार्ग नहीं चुका था. एक समय था कुष्ठ रोग असाध्य रोग था और उसका इलाज भी नहीं था ऐसे में कुष्ठ रोग को संक्रामक रोग मान कर रोगी को घर और समाज दोनों से ही बाहर निकाल दिया जाता था. ऐसे ही रोगियों की सेवा करना का बीड़ा बाबा आमटे ने उठाया और कई आश्रम खोले. इनमें महाराष्ट्र के चंद्रपुर का आनंदवन सबसे प्रसिद्ध है.
बाबा आमटे का पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था. उनका जन्म 26 दिसंबर 1914 को महाराष्ट्र के वर्धा जिसे के हिंगणघाट गांव में देशस्थ ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे लेखपाल थे. पिता की जमीदारी में मुरलीधर आमटे का बचपन बिलकुल राजकुमार की तरह से ही बीता था.
युवा अवस्था में भी मुरलीधर आमटे का अपना जलवा था. 14 साल की उम्र में उनके पास अपनी बंदूक थी वे भालू और हिरण का शिकार कर चुके थे. उन्हें तेज कार चलाने और हॉलीवुड फिल्में देखने के शौक था और वे अंग्रेजी फिल्मों की बेहतरीन समीक्षा लिखा करते थे. इसके साथ ही उन्होंने एमए एलएलबी तक की पढ़ाई भी की थी. और उन्होंने कई दिन तक वकालत भी की.
1942 में मुरलीधर आमटे ने स्वंतत्रता आंदोलन के भारतीय भारतीय नेताओं के बचाव के वकील के तौर पर काम किया जो भारत छोड़ो आंदोलन में भाग ले रहे थे. इस दौरान उन्हें महात्मा गांधी के सेवाश्रम में कुछ समय बिताने के मौका मिला जिसके बाद वे गांधी के अनुयायी हो गए. वे गांधी जी और विनोबा भावे से बहुत प्रभावित हुए. गांधी जी ने उन्हें अभय साधक नाम दिया.
बाबा आमटे ने गांधी जी से प्रभावित होकर खादी अपनाई और पूरे देश का भ्रमण किया. देश की गरीबी और गरीबों के प्रति हो रहे अन्याय से वे बहुत द्रवित हुए .लेकिन असली बदलाव आना अभी बाकी था. खुद बाबा आमटे के शब्दों में (जो उनके आनंदवन की वेबसाइट पर उल्लेखित भी है.), “मैं कभी किसी भी चीज से नहीं डरा, मैं अग्रेजों से भारतीय महिला की रक्षा के लिए भिड़ गया. गांधी जी ने मुझे अभय साधक कहा है. जब वरोरो में सफाई कर्मियों ने मुझे चुनौती दी, मैंने गटर साफ किए. लेकिन….” इसके बाद बाबा आमटे ने उन क्षणों के बारे में बताया जब उन्होंने जिंदा लाश के रूप में कुष्ठ रोगी तुलसीराम को देखा. इसी घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा “…. लेकिन वही व्यक्ति डर के मारे कांपने लगा जब उसने तुलसीराम की जिंदा लाश देखी.”इसी घटना ने बाबा आमटे के कार्यक्षेत्र की दिशा तय कर दी.
बाबा आमटे का कहना था कि कुष्ठ रोगियों की सच्ची मदद तभी हो सकेगीजब समाजा को मानसिक कुष्ठ से मुक्त किया जाएगा और इस रोग के प्रति अनावश्यक डर को खत्म किया जाएगा. यह साबित करने के लिए कि यह संक्रामक रोग नहीं है , बाबा आमटे ने खुद को बैसिली बैक्टिरीया का इंजेक्शन लगा लिया था. उस दौर में कुष्ठ को सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता था. लेकिन इसके साथ बाबा आमटे ने कुष्ठ रोगियों के सेवा के लिए हर संभव प्रयास किए.