दीपावली के ठीक एक दिन पहले छोटी दीपावली मनाई जाती है. जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान का विधि विधान से पूजन करने से व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त होता है. इस दिन शाम को दीपदान करने की भी प्रथा है. ऐसा माना जाता है कि दीपदान यमराज के लिए किया जाता है. हिंदू धर्म में इस पर्व का अत्यधिक महत्व है, इसलिए यह काफी महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. नरक चौदस क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है?
नरक चतुर्दशी के दिन रात में दिए जलाने की प्रथा बहुत पुरानी है और इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और लोक मान्यताएं हैं. एक कथा के अनुसार इस दिन ही भगवान कृष्ण ने अत्याचारी असुर नरकासुर का वध किया था और 16 हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंधन से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था. ऐसी मान्यता है कि इस उपलक्ष में इन कन्याओं ने दीपों की बारात सजाई थी.
इस दिन व्रत और पूजा के संदर्भ में भी एक प्राचीन कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार रंतिदेव नामक एक धर्मात्मा राजा हुआ करते थे. उन्होंने अनजाने में भी कभी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत खड़े हुए. यमदूत को देखकर राजा आश्चर्य से बोले कि मैंने कभी कोई पाप कर नहीं किया, फिर भी आप लोग मुझे लेने क्यों आए हैं और आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क में जाना पड़ेगा. यमदूतों ने बोला कि हे राजन, एक बार आपके द्वारा एक ब्राह्मण को भूखा लौटा दिया गया था. यह आपके उसी पाप कर्म का यह फल है.
इसके बाद राजा ने यमदूत से 1 वर्ष का समय मांगा और यमदूत ने राजा के पुन्यफलों के कारण उन्हें 1 वर्ष की मोहलत दी और राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी कहानी सुना कर इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा.
ऋषियों ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करने से और ब्राह्मणों को भोजन करवाने से उनके द्वारा किए अपराध क्षमा हो जाएंगे. राजा ने वैसा ही किया ऐसा करने से राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें बैकुंठ में स्थान प्राप्त हुआ. उस दिन से पाप और नरक से मुक्ति हेतु पृथ्वी पर कार्तिक चतुर्दशी के दिन व्रत करने का प्रचलन है.
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