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#UrbanNaxal | नक्सलवाद के अंत के साथ ही विकास की ओर बढ़ेंगे कदम

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साल 2025 की नई सुबह जब पूरा देश नववर्ष का जश्न मना रहा था, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक ट्वीट सामने आया—”दुर्गम और माओवादी प्रभावित क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की मैं सराहना करता हूं। इससे जीवन की सुगमता को बढ़ावा मिलेगा और आगे की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा। गढ़चिरौली और आसपास के मेरे भाइयों और बहनों को बधाई !” प्रधानमंत्री द्वारा महाराष्ट्र सरकार की सराहना राज्य के लिए गौरव की बात थी। साथ ही, यह नक्सलवादियों के लिए एक संकेत भी था कि उनकी आतंकवादी गतिविधियों का अंत निकट है।

नक्सलवाद, जो कभी एक विचारधारा के रूप में उभरा था, आज एक आतंकवादी संगठन के रूप में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। सरकार की नीतियों, पुलिस की सक्रियता और आदिवासी युवाओं की बदली सोच ने इसे कमजोर कर दिया है। अब समय दूर नहीं जब भारत से नक्सलवाद पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और ये दुर्गम क्षेत्र भी विकास की मुख्यधारा में शामिल होंगे।

1 जनवरी 2025 की सुबह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली में जाकर नक्सलियों को सीधी चुनौती दी। इस दौरे के दौरान 11 कुख्यात नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें मध्य भारत में नक्सली गतिविधियों के मास्टरमाइंड भूपति की पत्नी विमला चंद्रा सिडाम उर्फ तारा (62 वर्ष) भी शामिल थीं। स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद महाराष्ट्र में नक्सलवाद के पतन की यह ऐतिहासिक घटना थी।

नक्सलवाद: विचारधारा से आतंकवाद तक
महाराष्ट्र में नक्सलवाद 1980 से सक्रिय है। यह विचारधारा चीन के माओ त्से तुंग के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें सरकार की पूंजीवादी नीतियों को आदिवासी, किसान और मजदूरों की दुर्दशा का कारण बताया गया। 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में शुरू हुआ यह आंदोलन धीरे-धीरे हिंसक होता गया और अंततः एक आतंकी गतिविधि में परिवर्तित हो गया।

गृह मंत्रालय की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के बाद से हर साल औसतन 1,200 नक्सली घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें करीब 417 नागरिक मारे गए। 1980 से 2015 के बीच नक्सली हिंसा में 20,012 लोग मारे गए, जिनमें 4,761 नक्सली, 3,105 सुरक्षाकर्मी और 12,146 निर्दोष नागरिक थे।

नक्सली संगठन अपनी विचारधारा के नाम पर निर्दोष आदिवासियों की हत्याएं कर रहे थे। पुलिस का मुखबिर होने के संदेह में कई ग्रामीणों को सार्वजनिक रूप से मारा गया। रेड ज़ोन क्षेत्रों में नक्सलियों का प्रभाव घटने के कारण उन्होंने आम नागरिकों को बलि का बकरा बनाना शुरू कर दिया, जिससे स्थानीय लोग आतंक के साए में जीने को मजबूर थे।

सरकार की रणनीति और नक्सलियों का पतन
भारत सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ एक ठोस रणनीति अपनाई। गृह मंत्री अमित शाह ने 2026 तक नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया है। महाराष्ट्र सरकार ने भी विकास कार्यों को तेज किया है, जिसमें दुर्गम क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं का विस्तार और पुलिस चौकियों की स्थापना शामिल है।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आत्मसमर्पण योजना के तहत नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने का अवसर दिया। इस योजना के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास और रोजगार की व्यवस्था की जा रही है। सरकार की इन योजनाओं का असर दिखने लगा है, और अब तक कई नक्सली हथियार डालकर मुख्यधारा से जुड़ चुके हैं।

आदिवासी युवाओं की बदली मानसिकता
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं में अब इस आंदोलन के प्रति मोहभंग हो रहा है। वे देख रहे हैं कि यह आंदोलन उनके जीवन में सुधार लाने के बजाय केवल हिंसा और विनाश लेकर आया है। सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं, रोजगार के नए अवसरों और डिजिटल युग (मोबाइल, सोशल मीडिया) के प्रसार के कारण उनका झुकाव मुख्यधारा की ओर बढ़ रहा है।

अब नक्सली संगठनों के पास न तो नई भर्तियों के लिए युवा मिल रहे हैं और न ही स्थानीय जनता का समर्थन। पुलिस के बढ़ते दबाव और सरकार की प्रभावी नीतियों के कारण नक्सलवाद का अंत निकट है। यह सरकार और आम जनता दोनों की एक बड़ी जीत है।

— संजय सिंह ठाकुर, नागपुर