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इन लोगों की कहानी से आप भी हो सकते है “आत्मनिर्भर”

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जब तक आप खुद कुछ करने की चाह नहीं रखते, आपके जीवन में बदलाव की शुरुआत नहीं हो सकती है. याद रखें जहां चाह होती है, वहां राह अपने आप निकल के आती है. देश में ऐसे लाखों लोग है जो अपनी किस्मत को कोसते हुए जिंदगी बिता देते है. लेकिन ऐसे भी लोग हमारे देश में है जिन्होंने अपने आत्मविश्वास की मदद से कुछ आरम्भ किया और बन गए “आत्मनिर्भर”. कई ऐसे भी है जिन्होंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी और आत्मनिर्भरता का रास्ता अपनाया. देश की ये कुछ चुनिंदा कहानियां आपको भी “आत्मनिर्भर” बनने के लिए जरूर प्रेरित कर सकती है.

 

मराठी खाने ने जयंती को बना दिया “आत्मनिर्भर”

जयंती कथले आईटी कंपनी में काम करती थीं और उस समय उनकी कमाई लाखों में थी. जॉब के दौरान कई देशों में रहीं. जिन देशों में गईं, वहां सबसे बड़ी दिक्कत यही थी कि मनपसंद खाना नहीं मिल पाता था. बेंगलुरु में शिफ्ट हुईं, तब भी वो अपने मराठी खाने को बहुत मिस करती थीं. मार्केट की इस कमी को जयंती ने पहचान लिया और फिर शुरू हुई ‘पूर्णब्रह्म’ के बनने की कहानी, जिसकी आज देश-विदेश में 14 ब्रांच हैं. जयंती कहतीं है कि ‘आईटी फील्ड में अपना करियर 2000 में शुरू किया था. 2006 से 2008 तक ऑस्ट्रेलिया में रही. जॉब के दौरान मैं करीब 13 देशों में गईं, सब जगह शाकाहारी मराठी खाने की बहुत कमी खलती थी. कई जगह तो सिर्फ नॉनवेज का ही ऑप्शन होता था, वो खुद तो नॉनवेज खाकर पेट भर लेती थी, लेकिन पति वो बिल्कुल नहीं खा पाते थे.’ 2008 में जब वापस बेंगलुरु आई तो मराठी खाने की याद आने लगी. जॉब के साथ बहुत कुछ बना पाना मुमकिन नहीं था. इसलिए सोच लिया था कि इस फील्ड में कुछ किया जा सकता है. फिर नौकरी के साथ करीब तीन साल तक अपनी रिसर्च करती रही. कई लोगों से बातचीत के बाद मुझे मेरी दो फ्रेंड्स पार्टनरशिप के लिए मिल गईं. हम तीनों ने 6-6 लाख रुपए मिलाकर कुल 18 लाख रुपए से 2012 में बेंगलुरु में अपना रेस्टोरेंट शुरू किया.

हल्दी की खेती ने बनाया देवेश को “आत्मनिर्भर”

गुजरात के आणंद जिले के बोरियावी गांव के देवेश पटेल इन दिनों अपनी लाखों रुपयों की नौकरी छोड़कर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं. इंजीनियरिंग करने वाले देवेश हल्दी, अदरक, अश्वगंधा, नींबू, सब्जियां और अनाज अपने खेतों में उगाते हैं. हाल ही में उन्होंने इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हल्दी कैप्सूल लॉन्च किया है, जिसकी काफी डिमांड है. 1.25 करोड़ रु सालाना टर्नओवर है. उनके साथ काफी संख्या में दूसरे भी किसान जुड़े हैं. साथ ही कई विदेशी कंपनियां भी उनके साथ निवेश करना चाहती हैं. देवेश कहते हैं, ‘‘बोरियावी की हल्दी पूरे देश में फेमस है. कुछ दिन पहले इसका पेटेंट भी कराया है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए चार साल पहले आर्गेनिक खेती शुरू की. अभी 5-7 एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं.’’


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