बोधिसत्व भारत रत्न बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सन् 1956 में विजयदशमी के दिन नागपुर में अपने लाखों अनुयायियों के साथ धम्म दीक्षा ली थी. यह वह तारीख थी, जब भारत में धम्म कारवां को नई गति और दिशा मिली थी. यही कारन है कि हर साल लाखों की संख्या में आंबेडकर के बौद्ध अनुयायी दीक्षाभूमि में इकठ्ठा होते है. दीक्षाभूमि का ये परिसर नीले रंग में रंग जाता है. नागपुर की ऐसी कोई सड़क या इलाका नहीं दिखता है जहां आंबेडकर के अनुयायी जोश में नजर न आए.
हर साल 14 अक्टूबर को नागपुर की दीक्षाभूमि में लाखों की संख्या में आंबेडकर के बौद्ध अनुयाई इकट्ठा होते है. लेकिन इस साल कोविड के संक्रमण के खतरे को देखते हुए भीड़ नहीं होने देने का फैसला लिया गया है. इसी के तहत दीक्षाभूमि में इस साल लाखों लोगो को आने की अनुमति नहीं दी जा रही है. सादगी के साथ ही इस साल धम्म चक्र प्रवर्तन दिन मनाने का फैसला लिया गया है.
धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर नागपुर की दीक्षाभूमि पर हर वर्ष हजारो लोग धर्म परिवर्तन कर बौद्ध बनते हैं. सन 2018 में 62वे धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 62,000 तथा सन 2019 में 63वे धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के अवसर पर 67,543 अनुयायिओं ने दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म अपनाया था.
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने यह दिन बौद्ध धम्म दीक्षा के लिए चूना क्योंकि इसी दिन ईसा पूर्व तीसरी सदी में सम्राट अशोक ने भी बौद्ध धर्म ग्रहन किया था. तब से यह दिवस बौद्ध इतिहास में अशोक विजयादशमी के रूप में जाना जाता था. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने बीसवीं सदीं में बौद्ध धर्म अपनाकर भारत से लुप्त हुए धर्म का भारत में पुनरुत्थान किया.
रीडर्स आप आत्मनिर्भर खबर डॉट कॉम को ट्वीटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर फॉलो कर रहे हैं ना? …. अबतक ज्वाइन नहीं किया है तो अभी क्लीक कीजिये (ट्वीटर- @aatmnirbharkha1), (इंस्टाग्राम- @aatmnirbharkhabar2020), (फेसबुक- @aatmnirbharkhabar2020) और पाते रहिये हमारे अपडेट्स.