भारत का स्वतंत्रता दिवस हर साल 15 अगस्त को देश भर में हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन 200 वर्ष से अधिक समय तक ब्रिटिश राज के चंगुल से छूट कर एक नए युग की शुरूआत हुई थी। 15 अगस्त 1947 वह भाग्यशाली दिन था जब भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से स्वतंत्र घोषित किया गया और नियंत्रण की बागडोर देश के नेताओं को सौंप दी गई।
भारत करता था सबको आकर्षित
पुराने समय में पूरी दुनिया के लोग भारत आने के लिए उत्सुक रहा करते थे। सबसे पहले यहां फारसी आए, फिर ईरानी और पारसी भी भारत में आकर बस गए। उनके बाद मुगल आए और वे भी भारत में स्थायी रूप से बस गए। मुगलों ने भारत में कई सौ सालों तक राज किया। बाबर से लेकर औरंगजेब तक पीढ़ी दर पीढ़ी मुगल शासक राज करते गए। अंत में ब्रिटिश आए और उन्होंने लगभग 200 साल तक भारत पर शासन किया। भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट knowindia.gov.in के अनुसार, वर्ष 1757 ने प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने भारत पर राजनैतिक अधिकार प्राप्त कर लिया और उनका प्रभुत्व लॉर्ड डलहौजी के कार्य काल में यहां स्थापित हो गया जो 1848 में गवर्नर जनरल बने। उन्होंने पंजाब, पेशावर और भारत के उत्तर पश्चिम से पठान जनजातियों को संयुक्त किया
1856 तक अंग्रेजों ने जमा ली थी जड़ें
साल 1856 तक अंग्रेजों ने भारत में अपनी हूकुमत को मजबूर कर लिया था। उनका पूरे देश में अधिकार हो चुका था। जगह-जगह अंग्रेजों के अधिकारी मजबूती से स्थापित हो गए। एक तरफ जहां 19वीं शताब्दी तक अंग्रेजों का भारत में कब्जा हो चुका था तो वहीं यहां के कुछ लोगों ने इनके खिलाफ आवाज भी उठाई। विरोध के स्वर बुलंद करने वालों में असंतुष्ट स्थानीय शासक, बुद्घिजीवी तथा आम आदमी थे। धीरे-धीरे ये बगावत सैनिकों तक पहुंच गई। जिसने 1857 के विद्रोह का आकार लिया। 1857 का विद्रोह, जो मेरठ में सैन्य कर्मियों की बगावत से शुरू हुआ, जल्दी ही आग की तरह फैल गया और इससे ब्रिटिश शासन को एक गंभीर चुनौती मिली। हालांकि यह विद्रोह ब्रिटिश शासन की जड़ें हिलाने के लिए नाकाफी थी। एक साल के अंदर अंग्रेजों ने अपनी दमन नीति से इस आंदोलन को दबा दिया। यह निश्चित रूप से एक ऐसी लोकप्रिय क्रांति थी जिसमें भारतीय शासक, जनसमूह और नागरिक सेना शामिल थी, जिसने इतने उत्साह से इसमें भाग लिया कि इसे भारतीय स्वतंत्रता का पहला संग्राम कहा जा सकता है।
1857 में हुआ पहला विद्रोह
अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों का गुस्सा तब शुरु हुआ, जब उन्होंने यहां के लोगों को प्रताड़ित करना शुरु किया। इसकी शुरुआत अंग्रेजों द्वारा जमीनदारी प्रथा की शुरूआत के साथ हो गई। जिसमें मजदूरों को भारी करों के दबाव से कुचल डाला गया था, इससे जमीन के मालिकों का एक नया वर्ग बना। इसके अलावा धर्म-जाति के आधार पर भी अंग्रेजों ने अपनी दमन नीति को बढ़ाया। भारतीय सैनिक और साथ ही प्रशासन में कार्यरत नागरिक वरिष्ठ पदों पर पदोन्नत नहीं किए गए, क्योंकि ये यूरोपियन लोगों के लिए आरक्षित थे। इस प्रकार चारों दिशाओं में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष और बगावत की भावना फैल गई, जो मेरठ में सिपाहियों के द्वारा किए गए इस बगावत के स्वर में सुनाई दी जब उन्हें ऐसी कारतूस मुंह से खोलने के लिए कहा गया जिन पर गाय और सुअर की चर्बी लगी हुई थी, इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुईं। हिन्दु तथा मुस्लिम दोनों ही सैनिकों ने इन कारतूसों का उपयोग करने से मना कर दिया, जिन्हें 9 मई 1857 को अपने साथी सैनिकों द्वारा क्रांति करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया।
असहयोग आंदोलन चलाया गया
अंग्रेजों ने वफादार राजाओं, जमींदारों और स्थानीय सरदारों को अपनी सहायता दी जबकि, शिक्षित लोगों व आम जन समूह (जनता) की अनदेखी की। उन्होंने अन्य स्वार्थियों जैसे ब्रिटिश व्यापारियों, उद्योगपतियों, बागान मालिकों और सिविल सेवा के कार्मिकों (सर्वेन्ट्स) को बढ़ावा दिया। इस प्रकार भारत के लोगों को शासन चलाने अथवा नीतियां बनाने में कोई अधिकार नहीं था। परिणाम स्वरूप ब्रिटिश शासन से लोगों को घृणा बढ़ती गई, जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को जन्म दिया। 1920 से 1922 के बीच महात्मा गांधी तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाया गया, जिसने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की। जलियांवाला बाग नर संहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी ने अनुभव किया कि ब्रिटिश हाथों में एक उचित न्याय मिलने की कोई संभावना नहीं है इसलिए उन्होंने ब्रिटिश सरकार से राष्ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई और इस प्रकार असहयोग आंदोलन की शुरूआत की गई और देश में प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रभाव हुआ। यह आंदोलन अत्यंत सफल रहा, क्योंकि इसे लाखों भारतीयों का प्रोत्साहन मिला।
14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत आजाद हुआ
अगस्त 1942 में गांधी जी ने ”भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरूआत की तथा भारत छोड़ कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन ”करो या मरो” आरंभ करने का निर्णय लिया। महात्मा गांधी के अथक प्रयासों की बदौलत आखिरकार अंग्रेजों को उनके सामने झुकना पड़ा और भारत आजादी की ओर बढ़ चला। इस प्रकार 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को भारत आजाद हुआ (तब से हर वर्ष भारत में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है)। जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और 1964 तक उनका कार्यकाल जारी रहा।
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